देवी आणि देवता

शिव तांडव स्तोत्र: महत्त्व, फायदे आणि आध्यात्मिक शक्ती

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शिव तांडव स्तोत्र हे एक अत्यंत प्रभावशाली आणि शक्तिशाली स्तोत्र आहे जे लंकेचा राजा रावणाने स्वतः भगवान शिवाला प्रसन्न करण्यासाठी रचले होते. या स्तोत्रामध्ये शिवाच्या परम तेजस्वी, रौद्र आणि सौंदर्यदायी रूपाचे वर्णन आहे.

स्तोत्राची कथा:

पौराणिक कथेनुसार, रावण एकदा कैलास पर्वत उचलण्याचा प्रयत्न करतो, कारण तो शिवाचा परम भक्त होता. त्याने संपूर्ण पर्वत उचलला, पण शिवाने आपल्या अंगठ्याने पर्वत दाबून त्याला खालीच ठेवले. त्या वेदनेमध्येही रावणाने शिवाचे तांडव स्तोत्र रचले आणि ते म्हणू लागला. त्याच्या भक्तीने प्रसन्न होऊन शिवाने त्याला आशीर्वाद दिला.

Watch the Shiv Tandav Stotram Video

शिव तांडव स्तोत्राचे लाभ:

  1. मनाची एकाग्रता वाढवते: या स्तोत्राचे पठण मनाला स्थिर करते आणि एकाग्रता वाढवते.
  2. नकारात्मकता दूर करते: नकारात्मक ऊर्जा, भय आणि चिंता यापासून मुक्ती मिळते.
  3. शारीरिक व मानसिक आरोग्य सुधारते: नियमित पठणामुळे मनशांती मिळते आणि आरोग्यदायी जीवनशैली घडते.
  4. शिवकृपा प्राप्त होते: भक्तिभावाने हे स्तोत्र म्हणल्यास शिवाची विशेष कृपा लाभते.
  5. विपत्तीतून मुक्ती मिळते: संकटाच्या वेळी हे स्तोत्र रक्षा करते असे मानले जाते.

कसे पठण करावे?

दररोज केल्यास शिवकृपा निश्चितच लाभते.

दररोज सकाळी किंवा संध्याकाळी स्नानानंतर शांत मनाने हे स्तोत्र म्हणावे.

दिवा लावून, भगवान शिवाची प्रतिमा किंवा शिवलिंगासमोर बसून जप करावा.

शिव तांडव स्तोत्र हे केवळ एक स्तोत्र नाही, तर ते एक अद्वितीय भक्तिपूर्ण साधना आहे. श्रावण महिन्यात याचे पठण केल्यास त्याचे फळ अनेक पटींनी वाढते. चला, आपण सर्वांनी शिवाच्या चरणी अर्पण होऊन हे स्तोत्र आपल्या आयुष्यात समाविष्ट करूया.

📽️ शिव तांडव स्तोत्र व्हिडिओ (Shiv Tandav Stotram Video)
आमच्या YouTube चॅनेल BhaktiMeShakti वर ऐका शक्तिशाली शिव तांडव स्तोत्राचे सुंदर उच्चारण आणि भक्तीने भरलेले शिवदर्शन।
🙏 पाहा, ऐका आणि शिवाराधनेत तन्मय व्हा।

Lyrics of Shiv Tandav Stotram by Ravan

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥1॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥2॥

धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे(क्वचिच्चिदम्बरे) मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥5॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥6॥

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥7॥

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥8॥

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥9॥

अगर्व सर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥10॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥11॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रव्रितिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम ॥12॥

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥13॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदङ्गजत्विषां चयः ॥14॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥15॥

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥16॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥17॥

इति श्रीरावण कृतम्
शिव ताण्डव स्तोत्र संपूर्णम

ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय

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