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गणेश चतुर्थी: मुंबई और भारत के प्रसिद्ध पंडाल, करने योग्य कार्य एवं प्रमुख तथ्य

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गणेश चतुर्थी भारत के सबसे भव्य और प्रतीक्षित त्योहारों में से एक है, जिसे अपार भक्ति, उल्लास और सांस्कृतिक समृद्धि के साथ मनाया जाता है। जब “गणपति बप्पा मोरया” की गूंज सड़कों, घरों और मंदिरों में सुनाई देती है, तो करोड़ों लोग एकजुट होकर विघ्नहर्ता और बुद्धि तथा समृद्धि के देवता श्री गणेश का स्वागत करते हैं। इस दौरान भक्त गणेश मंत्रों का जाप भी करते हैं ताकि जीवन में आशीर्वाद, शांति और समृद्धि प्राप्त हो सके।

गणपति उत्सव कब शुरू हुआ?

गणेश चतुर्थी की परंपरा सदियों पुरानी है, लेकिन 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इसे सार्वजनिक पर्व का स्वरूप दिया। अंग्रेज़ों के शासनकाल में यह पर्व जन-एकता और शक्ति का प्रतीक बना। आज गणेश चतुर्थी पूरे भारत में विभिन्न समुदायों को जोड़ने वाला पर्व है।

मुंबई से लेकर पूरे भारत तक यह त्योहार भव्यता से मनाया जाता है। शानदार पंडाल, आकर्षक सजावट और अनोखी परंपराएँ हमारे विविध संस्कृति की झलक दिखाती हैं। इस लेख में हम आपके लिए मुंबई और भारत के प्रसिद्ध गणपति पंडाल (Famous Ganpati Pandals of Mumbai and India) लेकर आए हैं।

1. मुंबईचा राजा, गणेश गली, लालबाग (मुंबई)

1928 में स्थापित, मुंबईचा राजा मुंबई के सबसे प्रसिद्ध गणेश चतुर्थी पंडालों में से एक है। यह पंडाल लालबाग की गणेश गली में स्थित है और अपने भव्य थीम तथा भारत के प्रसिद्ध स्थलों की रचनात्मक झलकियों के लिए मशहूर है। हर साल आयोजक ऐतिहासिक स्मारकों या धार्मिक स्थलों की प्रतिकृति बनाते हैं, जिससे भक्तों को अद्भुत स्थापत्य कला का अनुभव करने का अवसर मिलता है।

रोचक तथ्य:

  • हर साल अलग-अलग भव्य थीम और कलाकारी।
  • लल्बागचा राजा से तुलना की जाती है, फिर भी अपनी खास पहचान रखता है।
  • श्रद्धालु दर्शन के साथ-साथ कलाकारी का आनंद भी लेते हैं।

क्या करें: थीम आधारित सजावट देखें, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद लें, और आरती में शामिल हों।

छवि श्रेय: https://www.freepressjournal.in/weekend/mumbaicha-raja-oldest-pandals-in-the-city-celebrates-350-years-of-shivaji-maharajs-coronation-with-a-special-theme

2. लालबागचा राजा (मुंबई)

मुंबई के गणेशोत्सव का निर्विवाद राजा, लालबागचा राजा 1934 में स्थापित किया गया था। यह ऐतिहासिक पंडाल इच्छाएँ पूरी करने के लिए प्रसिद्ध है, और लाखों भक्त घंटों लंबी कतारों में खड़े होकर सिर्फ एक झलक पाने के लिए आते हैं। भव्य आसन मुद्रा में विराजमान यह प्रतिमा करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था और आशा का प्रतीक बन चुकी है।

रोचक तथ्य:

  • यहाँ दो कतारें होती हैं – नवसाची लाइन (इच्छा पूर्ति के लिए) और मुखदर्शन लाइन।
  • हर साल सेलिब्रिटी और नेता भी यहाँ आते हैं।
  • मूर्ति लगभग 18–20 फीट ऊँची होती है।
  • क्या करें: नवसाची लाइन में दर्शन करें, भव्य आरती और समुदायिक प्रार्थना में शामिल हों।

छवि श्रेय: https://lalbaugcharaja.com/en/lalbaugcharaja-sarvajanik-ganeshotsav-mandal-91st-year-live-online-darshan-2024/ 

3. चिंचपोकळीचा चिंतामणि (मुंबई)

मुंबई के गणेशोत्सव का निर्विवाद राजा, लालबागचा राजा 1934 में स्थापित किया गया था। यह ऐतिहासिक पंडाल इच्छाएँ पूरी करने के लिए प्रसिद्ध है, और लाखों भक्त घंटों लंबी कतारों में खड़े होकर सिर्फ एक झलक पाने के लिए आते हैं। भव्य आसन मुद्रा में विराजमान यह प्रतिमा करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था और आशा का प्रतीक बन चुकी है।

रोचक तथ्य:

  • स्वतंत्रता संग्राम के समय सामुदायिक एकता का प्रतीक।
  • मूर्ति का डिज़ाइन हर साल थोड़ा बदलता है।
  • आकर्षक थीम के बजाय भक्ति पर अधिक ध्यान।
  • क्या करें: पारंपरिक संगीत सुनें और शताब्दी पुरानी आरती का अनुभव लें।

छवि श्रेय: https://www.freepressjournal.in/lifestyle/from-lalbaugcha-raja-to-chinchpokli-cha-chintamani-5-iconic-pandals-to-visit-in-mumbai-for-ganesh-chaturthi 

4. जीएसबी सेवा मंडल, किंग्स सर्कल (मुंबई)

1954 में गौड़ सारस्वत ब्राह्मण समुदाय द्वारा स्थापित, जीएसबी सेवा मंडल गणपति को मुंबई का सबसे समृद्ध गणपति माना जाता है। यहाँ की प्रतिमा असली सोने, चांदी और कीमती रत्नों से सजाई जाती है। अन्य कई पंडालों के विपरीत, यहाँ के उत्सव पर्यावरण अनुकूल परंपराओं पर केंद्रित होते हैं, जहाँ प्रतिमा मिट्टी से बनाई जाती है।

रोचक तथ्य:

  • करोड़ों कीमती आभूषणों से सजी मूर्ति।
  • पूरी तरह इको-फ्रेंडली मिट्टी और प्राकृतिक रंगों से बनी मूर्ति।
  • दक्षिण भारतीय शैली में विशेष अनुष्ठान।

क्या करें: सांस्कृतिक कार्यक्रम देखें और दक्षिण भारतीय प्रसाद का आनंद लें।

छवि श्रेय: https://www.mid-day.com/mumbai/mumbai-news/article/ganeshotsav-mumbais-gsb-seva-mandals-ganesha-idol-adorned-with-69kg-gold-336-kg-silver-23309672 

5. अंधेरीचा राजा (मुंबई)

1966 में शुरू हुआ, अंधेरीचा राजा मुंबई का सबसे प्रसिद्ध उपनगरीय गणेश पंडाल है। जहाँ लल्बागचा राजा इच्छाओं की पूर्ति के लिए जाना जाता है, वहीं अंधेरीचा राजा बड़े सपनों—विशेषकर करियर और पारिवारिक जीवन से जुड़ी इच्छाओं—को पूरा करने के लिए प्रसिद्ध है। अन्य पंडालों से अलग, इसका विसर्जन अनंत चतुर्दशी या कभी-कभी उसके बाद किया जाता है।

रोचक तथ्य:

  • “अंधेरीचा राजा” के नाम से मशहूर।
  • करियर और पारिवारिक इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रसिद्ध।
  • हर साल मूर्ति का डिज़ाइन बदलता है।

क्या करें: सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जाएँ और स्थानीय उत्सव का आनंद लें।

छवि श्रेय: https://www.mid-day.com/mumbai/mumbai-news/article/ganeshotsav-2024-mumbais-andhericha-raja-stays-a-bit-longer-with-devotees-heres-why-23392762

6. गिरगांवचा राजा (मुंबई)

दक्षिण मुंबई में स्थित गिरगांवचा राजा अपने पर्यावरण अनुकूल दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध है। आयोजक यह सुनिश्चित करते हैं कि मूर्ति प्राकृतिक मिट्टी से बनाई जाए ताकि पर्यावरण को न्यूनतम हानि पहुँचे। सामुदायिक सहयोग से होने वाला यह उत्सव परंपरा और स्थिरता के बीच एक संतुलन बनाए रखता है।

रोचक तथ्य:

  • पर्यावरण संरक्षण की मिसाल।
  • इको-फ्रेंडली भक्तों के बीच खास लोकप्रिय।

क्या करें: चौपाटी पर विसर्जन देखें और पर्यावरण अनुकूल उत्सव का अनुभव लें।

छवि श्रेय: https://x.com/Eternaldharma_/status/1833094418192069047 

7. कालाचौकी महागणपति (मुंबई)

मुंबई के सबसे पुराने पंडालों में से एक, कालाचौकी महागणपति की स्थापना 1929 में हुई थी। महागणपति की मूर्ति अपनी दिव्य आभा और बारीक कारीगरी के लिए जानी जाती है। इसका इतिहास मुंबई के श्रमिकों और मिल संस्कृति से गहराई से जुड़ा हुआ है।

रोचक तथ्य:

  • ऐतिहासिक रूप से मुंबई के वस्त्र मिल श्रमिकों से जुड़ा हुआ।
  • मूर्ति का डिज़ाइन अक्सर पारंपरिक महाराष्ट्रीयन शैली को दर्शाता है।
  • मुंबई के श्रमिक वर्ग के इतिहास से सांस्कृतिक जुड़ाव बनाए रखता है।

क्या करें: पारंपरिक मराठी आरती और उत्सव का आनंद लें।

छवि श्रेय: https://chat.google.com/dm/vqSx9cAAAAE/SBM-QVHUR9Q/SBM-QVHUR9Q?cls=10 

8. डोंगरीचा राजा (मुंबई)

दक्षिण मुंबई के डोंगरी क्षेत्र में स्थित डोंगरीचा राजा स्थानीय मुस्लिम और हिंदू समुदायों के बीच बेहद लोकप्रिय है और एकता तथा भाईचारे का प्रतीक माना जाता है। दशकों पहले शुरू हुआ यह पंडाल आकार में लल्बाग की तुलना में छोटा है, लेकिन स्थानीय स्तर पर इसका अत्यधिक महत्व है।

रोचक तथ्य:

  • सांप्रदायिक सौहार्द्र का प्रतीक।
  • हर साल अनोखा मूर्ति डिज़ाइन।

क्या करें: मोहल्ले का उत्सव देखें, स्ट्रीट फूड और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद लें।

छवि श्रेय: https://mumbaichaganpati.blogspot.com/2018/09/dongri-cha-raja-2018.html 

9. खैरताबाद गणेश (हैदराबाद)

1954 में स्थापित, खैरताबाद गणेश भारत की सबसे ऊँची गणेश प्रतिमाओं में से एक है। हर साल यह प्रतिमा बेहद विशाल स्वरूप में बनाई जाती है, जो कभी-कभी 50 फीट से भी अधिक ऊँची होती है। इसकी भव्यता न केवल हैदराबाद बल्कि पूरे भारत से भक्तों को आकर्षित करती है।

रोचक तथ्य:

  • भारत की सबसे ऊँची गणेश मूर्तियों में से एक।
  • हर साल नई थीम।

क्या करें: विशाल मूर्ति का दर्शन करें और हैदराबादी व्यंजनों का आनंद लें।

छवि श्रेय: https://www.freepressjournal.in/viral/hyderabad-visarjan-of-khairatabads-70-foot-bada-ganesh-see-visuals 

10. दगडूशेठ हलवाई गणपति (पुणे)

शायद पुणे का सबसे प्रसिद्ध गणपति, श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई गणपति 1893 में एक मिठाई व्यवसायी दगडूशेठ हलवाई द्वारा स्थापित किया गया था। इस पंडाल की पृष्ठभूमि सोने से सजी होती है और प्रतिमा को कीमती आभूषणों से अलंकृत किया जाता है। लोकमान्य तिलक ने भी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान लोगों को एकजुट करने के लिए इस उत्सव का उपयोग किया था।

रोचक तथ्य:

  • तिलक जी ने इसे स्वतंत्रता संग्राम में लोगों को जोड़ने का माध्यम बनाया।
  • मशहूर हस्तियाँ यहाँ हर साल आती हैं।

क्या करें: पूजा करें और सामाजिक कार्यों में भाग लें।

छवि श्रेय: https://www.shutterstock.com/search/dagdusheth-halwai-temple?dd_referrer=https%3A%2F%2Fwww.google.com%2F 

11. कस्बा गणपति (पुणे)

1893 में स्थापित, कस्बा गणपति को पुणे का ग्रामदैवत (नगर देवता) माना जाता है। लोकमान्य तिलक ने इसे पुणे शहर में गणेश विसर्जन शोभायात्रा का प्रथम नेतृत्व करने का सम्मान प्रदान किया था।

रोचक तथ्य:

  • पुणे में विसर्जन यात्रा का प्रथम सम्मान।
  • स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा इतिहास।

क्या करें: पारंपरिक संगीत और विसर्जन शोभायात्रा का आनंद लें।

छवि श्रेय: https://www.shutterstock.com/search/dagdusheth-halwai-temple?dd_referrer=https%3A%2F%2Fwww.google.com%2F 

12. नाशिकचा राजा (नाशिक)

मुंबई के लालबागचा राजा से प्रेरित होकर स्थापित, नाशिकचा राजा आज नाशिक का सबसे प्रसिद्ध गणेश पंडाल बन चुका है। 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में शुरू हुई इस परंपरा में हर साल हजारों भक्त दर्शन के लिए उमड़ते हैं।

 रोचक तथ्य:

  • यह उत्तर महाराष्ट्र का सबसे बड़ा गणेशोत्सव माना जाता है।
  • गणेश मूर्ति का डिज़ाइन अक्सर लालबागचा राजा से प्रेरित होता है।
  • यहाँ भक्ति कार्यक्रमों के साथ-साथ सांस्कृतिक गतिविधियों का भी केंद्र होता है।

क्या करें: नाशिक की शोभायात्रा और भजन कार्यक्रमों में भाग लें।

छवि श्रेय: https://zeezest.com/culture/kasba-peth-ganpati-story-413 

13. बेंगलुरु गणेश उत्सव (बेंगलुरु)

1962 में शुरू हुआ बेंगलुरु गणेश उत्सव दक्षिण भारत के सबसे बड़े गणेशोत्सवों में से एक है। पारंपरिक पंडालों से अलग, यह उत्सव एक सांस्कृतिक महोत्सव के रूप में मनाया जाता है, जहाँ भक्ति के साथ-साथ संगीत, नृत्य और नाटक का सुंदर संगम देखने को मिलता है।

रोचक तथ्य:

  • शास्त्रीय संगीत और नृत्य कार्यक्रम।
  • हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं।

क्या करें: लाइव संगीत, कर्नाटका भोजन और भजनों का आनंद लें।

छवि श्रेय: https://lokmat.news18.com/maharashtra/nashik/nashik-police-and-municipal-corporation-ready-for-ganesh-immersion-know-all-details-here-757638.html 

14. धरमपेठ सार्वजनिक गणेशोत्सव (नागपुर)

1925 में स्थापित, धारमपेठ सार्वजनिक गणेशोत्सव नागपुर का सबसे प्रमुख गणेशोत्सव माना जाता है। यहाँ पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ-साथ भव्य सजावट देखने को मिलती है। विदर्भ और आस-पास के इलाकों से हजारों श्रद्धालु यहाँ बप्पा के दर्शन के लिए आते हैं।

रोचक तथ्य:

  • लगभग 100 साल पुराना उत्सव।
  • सामाजिक संदेशों पर आधारित थीम।

क्या करें: सुंदर पंडाल सजावट देखें और नागपुरी मिठाइयों का स्वाद लें।

छवि श्रेय: https://www.youtube.com/watch?v=TB3ybHMCFVA 

15. मारुतीगड सार्वजनिक गणेशोत्सव (पणजी, गोवा)

1909 में शुरू हुआ, मारुतिगड सार्वजनिक गणेशोत्सव महाराष्ट्र के बाहर का सबसे पुराना सार्वजनिक गणेशोत्सवों में से एक है। यह पंज़ीम के मारुति मंदिर में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है और गोवा की सांस्कृतिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।

रोचक तथ्य:

  • कोंकणी संगीत और नृत्य मुख्य आकर्षण।
  • गोवा का सबसे बड़ा गणेश उत्सव।

क्या करें: कोंकणी सांस्कृतिक कार्यक्रम और गोवा की मिठाइयों का स्वाद लें।

छवि श्रेय: https://www.gomantaktimes.com/ampstories/web-stories/have-you-seen-these-beautiful-sarvajanik-ganesh-mandals-in-goa 

निष्कर्ष

गणेश चतुर्थी केवल एक त्योहार नहीं बल्कि करोड़ों लोगों की भावनाओं से जुड़ा उत्सव है। मुंबई की ऊँची-भव्य मूर्तियों से लेकर गोवा के शताब्दी पुराने उत्सवों तक, हर पंडाल में भक्ति, इतिहास और सांस्कृतिक गर्व छिपा है। इन पंडालों का दर्शन न केवल आशीर्वाद दिलाता है बल्कि भारत की समृद्ध परंपराओं की झलक भी प्रस्तुत करता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों

गणेश चतुर्थी कब मनाई जाती है?

गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है, जो आमतौर पर अगस्त–सितंबर में आती है।

गणेश चतुर्थी का महत्व क्या है?

यह पर्व विघ्नहर्ता श्री गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसे बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत कब और किसने की थी?

1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इसे सार्वजनिक पर्व का रूप दिया था, ताकि जन-एकता और स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूती मिले।

मुंबई का सबसे प्रसिद्ध गणेश पंडाल कौन सा है?

मुंबई का सबसे प्रसिद्ध गणेश पंडाल लालबागचा राजा है, जिसे “इच्छा पूरी करने वाला गणपति” भी कहा जाता है।

लालबागचा राजा की खासियत क्या है?

यहाँ दो तरह की कतारें होती हैं – नवसाची लाइन (इच्छा पूरी करने के लिए) और मुखदर्शन लाइन (साधारण दर्शन के लिए)।

मुंबईचा राजा पंडाल क्यों मशहूर है?

यह हर साल अपनी भव्य थीम और ऐतिहासिक/धार्मिक स्थलों की प्रतिकृतियों के लिए प्रसिद्ध है।

चिंचपोकळीचा चिंतामणि की खासियत क्या है?

यह पंडाल स्वतंत्रता संग्राम के समय सामुदायिक एकता का प्रतीक बना और आज भी भक्ति और परंपरा पर केंद्रित है।

भारत की सबसे ऊँची गणेश प्रतिमा कहाँ स्थापित होती है?

हैदराबाद का खैरताबाद गणेश सबसे ऊँची प्रतिमाओं में से एक है, जो अक्सर 50 फीट से भी बड़ी होती है।

कस्बा गणपति को क्यों ग्रामदैवत कहा जाता है?

इसे पुणे का नगर देवता माना जाता है और विसर्जन शोभायात्रा का प्रथम नेतृत्व करने का सम्मान भी प्राप्त है।

गणेश चतुर्थी के दौरान क्या करना चाहिए?

पंडाल दर्शन, आरती और भजन में शामिल हों, पर्यावरण-अनुकूल मूर्तियों को बढ़ावा दें, स्थानीय संस्कृति और भोजन का आनंद लें।

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